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स्थानीय निकाय चुनाव स्थगित, जिला नियोजन समिति में पद पाने की होड़

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पुणे। महाराष्ट्र में स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं के चुनाव फिलहाल स्थगित रहने के संकेत मिल रहे हैं। ऐसे में विभिन्न राजनीतिक दलों के पदाधिकारी अब जिला नियोजन समिति (डीपीसी) में स्थान पाने के लिए जोर लगा रहे हैं। राज्य में भारतीय जनता पार्टी, शिवसेना (शिंदे गट) और राष्ट्रवादी कांग्रेस (अजित पवार गट) की महायुती सरकार है। इस स्थिति में जिला नियोजन समिति का सदस्य बनकर विकास निधि हासिल करने की रणनीति बनाई जा रही है।

स्थानीय चुनाव में देरी, डीपीसी पर बढ़ी निगाहें

राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव पिछले साढ़े तीन से चार वर्षों से अटके हुए हैं। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण देने की मांग को लेकर न्यायालय में जनहित याचिकाएं दाखिल की गई थीं, जिन पर अब तक सुनवाई लंबित है। इसके कारण चुनाव में लगातार देरी हो रही है। न्यायालय में सुनवाई न होने से अगली तारीखें टल रही हैं, जिससे निकट भविष्य में चुनाव की संभावना क्षीण होती जा रही है।

महायुती सरकार के सामने चुनौती

राज्य में महायुती सरकार के तहत तीन प्रमुख दल हैं। इसलिए जिला नियोजन समिति के सदस्य नियुक्त करते समय इन दलों को संतुलन साधना होगा। अपने कार्यकर्ताओं को इस समिति में जगह दिलाने के लिए नेताओं द्वारा पालकमंत्री और वरिष्ठ मंत्रियों तक सिफारिशें पहुंचाई जा रही हैं।

डीपीसी का बजट 1200 करोड़, बढ़ी होड़

पुणे जिला नियोजन समिति का वर्ष 2025-26 का अनुमानित बजट लगभग 1200 करोड़ रुपये है। इस फंड से पानी आपूर्ति, सड़क निर्माण, विद्युत व्यवस्था, स्कूलों की मरम्मत, समाज मंदिरों का निर्माण, पुलों की मरम्मत, स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार जैसे कार्य किए जाते हैं। समिति का सदस्य बनने पर अपने क्षेत्र के लिए निधि लाने और विकास कार्यों का श्रेय लेने का अवसर मिलता है। आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए सभी दलों के इच्छुक नेताओं ने इसके लिए सक्रियता बढ़ा दी है।

विशेष और नामांकित सदस्यों की संख्या

पुणे जिला नियोजन समिति में 4 नामांकित सदस्य और 14 विशेष आमंत्रित सदस्य होते हैं। समिति के अध्यक्ष पालकमंत्री होते हैं और राज्य सरकार द्वारा नामांकित सदस्य नियुक्त किए जाते हैं। राजनीतिक दल अक्सर उन पदाधिकारियों को इस समिति में जगह देते हैं, जिन्हें अन्यत्र समायोजित नहीं किया जा सकता।

क्या इस बार भी बनेगी ‘जम्बो’ समिति?

पिछली महायुती सरकार के दौरान इच्छुक नेताओं की संख्या अधिक होने के कारण नियमों को दरकिनार कर 15 से 20 सदस्यों की ‘जम्बो’ समिति बनाई गई थी। इस बार भी क्या वही परंपरा जारी रहेगी या फिर नियमानुसार सीमित संख्या में नियुक्तियां होंगी, इसे लेकर राजनीतिक हलकों में उत्सुकता बनी हुई है।

फिलहाल चुनाव नहीं, डीपीसी पर केंद्रित सियासत

स्थानीय चुनाव की अनिश्चितता के चलते फिलहाल सत्तारूढ़ दलों ने जिला नियोजन समिति की ओर रुख कर लिया है। सत्ता पक्ष के नेता अपने करीबी लोगों को समिति में शामिल कराने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं। देखना होगा कि इस राजनीतिक खींचतान में किसे जगह मिलती है और किसे इंतजार करना पड़ता है।

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