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जुलाई के अंत तक नागरिकों के लिए खुलेगा “विश्राम बगवाड़ा” – मुख्य अभियंता युवराज देशमुख

संदीप खर्डेकर के सतत प्रयासों को मिली सफलता

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पुणे. पुणे की ऐतिहासिक और गौरवशाली धरोहर “विश्राम बगवाड़ा” का मुख्य भाग जुलाई के अंत तक आम नागरिकों और पर्यटकों के लिए खोल दिया जाएगा। यह जानकारी पुणे महानगरपालिका के मुख्य अभियंता युवराज देशमुख ने दी है।

इस कार्य में विशेष भूमिका निभाने वाले क्रिएटिव फाउंडेशन के अध्यक्ष संदीप खर्डेकर ने इसके जीर्णोद्धार कार्य में हो रही देरी को लेकर प्रशासन को सूचित किया था, जिसके बाद कार्य में तेजी आई और महल का संरक्षण कार्य अंतिम चरण में पहुंच चुका है। इसके बाद “विश्राम बगवाड़ा” का मुख्य भाग जुलाई के अंत तक आम नागरिकों और पर्यटकों के लिए खोल दिया जाएगा।

पुणे महानगरपालिका के परियोजना विभाग के अंतर्गत हेरिटेज सेल द्वारा बीते दो वर्षों से विश्राम बगवाड़ा के संरक्षण और पुनर्निर्माण का कार्य किया जा रहा है। परियोजना अभियंता सुनील मोहिते ने बताया कि “गर्मी, हवा और बारिश के कारण महल का अग्रभाग क्षतिग्रस्त हो गया था। हमने इसे मूल स्वरूप में बहाल करने का कठिन कार्य सफलतापूर्वक किया गया है। प्राचीन लकड़ी के महीरप और सजावट को यथावत पुनर्स्थापित करना एक चुनौती था, लेकिन टीम ने इसे मुमकिन बनाया।” साथ ही उन्हीने कहा, महल के हॉल नंबर 1 और 2 पहले ही पर्यटकों के लिए खोले जा चुके हैं। अब मुख्य प्रवेश द्वार और अग्रभाग जुलाई के अंत तक आम जनता के लिए खोल दिया जाएगा। क्रिएटिव फाउंडेशन के अध्यक्ष संदीप खर्डेकर द्वारा प्रशासन को सूचित किए जाने के बाद इस कार्य को तय समय पर पूरा किया जा रहा है।

इतिहास की धरोहर
“विश्राम बगवाड़ा” को बाजीराव पेशवा द्वितीय ने 1750 में हरिपंत भाऊ फड़के से खरीदा था और 1810 में इसे एक भव्य महल का रूप दिया गया। 1820 में पेशवाओं द्वारा किले को ध्वस्त कर वहां वेद विद्यालय की स्थापना की गई, जो आगे चलकर डेक्कन कॉलेज बना।1880 में किले का पूर्वी हिस्सा जल गया।1930 से 1960 के बीच इसे स्थानांतरित करने की कोशिशें की गईं।1990 में इस धरोहर का संरक्षण कर संरक्षित किया गया।पुणे महानगरपालिका के परियोजना विभाग के अंतर्गत हेरिटेज सेल द्वारा बीते दो वर्षों से विश्राम बगवाड़ा के संरक्षण और पुनर्निर्माण का कार्य किया जा रहा है।

कोट –

“यह निर्णय जल्द लिया जाना चाहिए कि विश्राम बगवाड़ा का संचालन महानगरपालिका सीधे करे या इसे किसी संस्था के माध्यम से संचालित किया जाए, ताकि यह सांस्कृतिक खजाना शहरवासियों की पहुंच में बना रहे।”

संदीप खर्डेकर,अध्यक्ष ,क्रिएटिव फाउंडेशन.

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