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पुणे फेस्टिवल में नारदीय कीर्तन महोत्सव भक्तिभाव से संपन्न

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पुणे : 37वें पुणे फेस्टिवल के अंतर्गत महाराष्ट्र साहित्य परिषद में बुधवार को नारदीय कीर्तन महोत्सव भक्ति और आध्यात्मिकता के माहौल में संपन्न हुआ। कीर्तनकारों ने गणराय के 14 विद्याओं और 64 कलाओं के अधिपति रूप का सुंदर निरूपण करते हुए श्रोताओं को ज्ञान, श्रद्धा और संस्कारों का संगम अनुभवायला लावला।

कार्यक्रम की शुरुआत गणेश वंदना से हुई। कीर्तनकारों ने अपने प्रवचन में कहा कि ध्यान का अर्थ केवल ध्यानधारणा करना नहीं है, बल्कि कोई भी कार्य पूरी एकाग्रता से करना ही सच्चा ध्यान है। गणपति विद्या और कलाओं के अधिपति हैं, इसलिए उनके ध्यान से विद्यार्थियों को बुद्धि, एकाग्रता और सफलता प्राप्त होती है।

इस अवसर पर ह.भ.प. निवेदिता मेहंदळे, ह.भ.प. प्रज्ञा वाळिंबे, युवा कीर्तनकार तन्मयी मेंदळे-कुलकर्णी, ह.भ.प. धनदा गदगकर, ह.भ.प. दया कुलकर्णी, ह.भ.प. वैदेही जोशी और ह.भ.प. अर्चना कुबेर ने कीर्तन प्रस्तुत किए। भगवान शंकर और त्रिपुरासुर युद्ध की कथा सुनाते हुए यह स्पष्ट किया गया कि स्वयं महादेव को भी सफलता प्राप्त करने के लिए पहले मंगलमूर्ति गणेशजी की पूजा करनी पड़ी। इसी प्रकार गोसावीनंदन महाराज, समर्थ रामदास स्वामी, बल्लाळेश्वर और नाभी की कथाओं के माध्यम से भक्ति, नामस्मरण और गुरु की आवश्यकता पर विशेष बल दिया गया। ब्रह्मचैतन्य गोंदवलेकर महाराज का उदाहरण देकर बताया गया कि नामस्मरण ही जीवन का वास्तविक बल है।

कीर्तनकारों के प्रभावी गायन और निरूपण से पूरा सभागार भक्तिरस में डूब गया। उपस्थित श्रोता कथाओं और प्रवचनों में तल्लीन होकर बार-बार तालियों की गड़गड़ाहट से वातावरण को और भी उल्लासमय बनाते रहे।

समापन अवसर पर पुणे फेस्टिवल के मुख्य संयोजक एड. अभय छाजेड ने महिला कीर्तनकारों का सत्कार किया। इस समय उपाध्यक्ष कृष्णकुमार गोयल और सांस्कृतिक कार्यक्रम समन्वयक डॉ. सतीश देसाई उपस्थित थे। तबले पर ओंकार जोशी और हारमोनियम पर साहिल पुंडलिक ने संगत दी।

भक्ति, ज्ञान और संस्कारों से सजे इस कीर्तन महोत्सव का समापन भैरवी के साथ हुआ।

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