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वकीलों को होना होगा टेक्नो-सेवी!

डॉ. हेरॉल्ड डिकोस्टा : एमआईटी एडीटी विश्वविद्यालय के विधि महाविद्यालय में संगोष्ठी

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पुणे : डिजिटल युग में प्रौद्योगिकी ने कानून की तुलना में कहीं अधिक तेज़ी से प्रगति की है और इसका गहरा प्रभाव जांच एजेंसियों तथा अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर पड़ा है। पिछले दो दशकों में साइबर अपराधों के हज़ारों मामले सीधे सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँचे हैं। ऐसी परिस्थिति में विदेशी सर्वरों से समय पर ई-सबूत प्राप्त करना, क्रिप्टो लेन-देन पर नियंत्रण, क्यूआर कोड धोखाधड़ी रोकना तथा न्यायपालिका में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का विवेकपूर्ण उपयोग करना आज की प्रमुख आवश्यकता है। इसलिए ऐसे मामलों से निपटने के लिए वकीलों को टेक्नो-सेवी बनना ही होगा, यह विचार साइबर सिक्योरिटी कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष डॉ. हेरॉल्ड डिकोस्टा ने व्यक्त किया।

वे एमआईटी आर्ट, डिज़ाइन एंड टेक्नोलॉजी विश्वविद्यालय के ‘स्कूल ऑफ लॉ’ द्वारा आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी “आधुनिक युग की कानूनी चुनौतियाँ : वकीलों और विधिवेत्ताओं के शैक्षणिक दृष्टिकोण” के उद्घाटन अवसर पर बोल रहे थे। इस अवसर पर बीवीजी इंडिया के उपाध्यक्ष अमोल उमराणिकर, एमआईटी एडीटी विश्वविद्यालय की प्रोवोस्ट प्रो. डॉ. सायली गणकर, लोकमान्य तिलक लॉ कॉलेज की प्राचार्या डॉ. केतकी दळवी, डॉ. मोहिनी सूर्यवंशी तथा स्कूल ऑफ लॉ के प्रा. डॉ. गोविंद राजपाल आदि उपस्थित थे।

अपने मुख्य भाषण में डॉ. डिकोस्टा ने कहा, “वर्तमान में ई-मेल दुरुपयोग, क्यूआर कोड लेन-देन धोखाधड़ी, अनधिकृत वेबसाइटों पर अवैध बिक्री, क्रिप्टो और केवाईसी संबंधी साइबर अपराधों में भारी वृद्धि हुई है। वित्तीय धोखाधड़ी रोकने के लिए कानून का कड़ाई से क्रियान्वयन आवश्यक है। इसके लिए कानूनी साक्षरता के साथ ही वकीलों, पुलिसकर्मियों और विद्यार्थियों को डिजिटल सबूत कैसे जुटाए जाएँ तथा साइबर फॉरेन्सिक्स का अध्ययन करना अनिवार्य है।” साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि प्रौद्योगिकी का अत्यधिक उपयोग मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है, इसलिए इसमें संतुलन आवश्यक है।

एमआईटी एडीटी विश्वविद्यालय की प्रोवोस्ट डॉ. गणकर ने इस अवसर पर कहा, “एआई तकनीक न्याय में सहायक होगी, किंतु न्याय का आत्मा सदैव मानवीय विवेक में ही निहित है।”

संगोष्ठी का दूसरा सत्र “सामाजिक परिवर्तनों के साथ संवैधानिक मूल्यों का संतुलन” विषय पर हुआ। इसमें महाराष्ट्र शासन के पूर्व अधिकारी डॉ. नागेश कुमार, अधिवक्ता विभाकर रामतीर्थकर, डॉ. दीप्ति लेले, अधिवक्ता विश्वास खराबे, अधिवक्ता योगेश पवार और अधिवक्ता मंगेश खराबे आदि विशेषज्ञों ने भाग लिया। उन्होंने विद्यार्थियों को न्यायालयीन कार्यप्रणाली तथा भारतीय संविधान में हो रहे परिवर्तनों का अध्ययन करने की आवश्यकता समझाई।

विधि शिक्षा में प्रौद्योगिकी आवश्यक : डॉ. गणकर
डॉ. गणकर ने आगे कहा, “विधि शिक्षा में प्रौद्योगिकी और नैतिकता को समाविष्ट करना समय की माँग है। इसी उद्देश्य से एमआईटी एडीटी स्कूल ऑफ लॉ ने बीबीए एलएलबी (इंटीग्रेटेड), एलएलएम, एलएलबी जैसे स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों तथा लेबर वेलफेयर डिप्लोमा में आधुनिक प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा, फॉरेन्सिक और एआई टूल्स जैसे विषय शामिल किए हैं। ये पाठ्यक्रम एचआर प्रबंधकों, आईटी कर्मचारियों, डॉक्टरों और उद्यमियों के लिए बदलती तकनीक के साथ कदम मिलाने में उपयोगी सिद्ध होंगे।” उन्होंने विद्यार्थियों से आह्वान किया कि “इन पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेकर तकनीक के साथ आगे बढ़ें।”

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