साहित्य अकादमी पुरस्कारों की घोषणा स्थगित करना निंदनीय – कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता गोपालदादा
अकादमी की स्वायत्तता पर मोदी–शाह सरकार का हस्तक्षेप अस्वीकार्य -काँग्रेस का कड़ा विरोध

पुणे, 23 दिसंबर: साहित्य अकादमी के वर्ष 2025 के पुरस्कारों की होने वाली घोषणा को केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा हस्तक्षेप कर 18 दिसंबर 2025 को स्थगित कराया जाना अत्यंत निंदनीय है। यह कदम साहित्यकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उनकी अस्मिता पर सीधा हमला है तथा साहित्य अकादमी की स्वायत्तता को कमजोर करने का प्रयास है। केंद्र की मोदी–शाह सरकार द्वारा किए जा रहे इस राजनीतिक हस्तक्षेप का कांग्रेस ने तीखा विरोध दर्ज कराया है। यह विचार महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता गोपालदादा तिवारी ने व्यक्त किया।
उनोहोने ने कहा कि साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित की जाने वाली पत्रकार परिषद को मंत्रालय के दबाव में स्थगित कराना लोकतांत्रिक और सांस्कृतिक मूल्यों के खिलाफ है। यह पहली बार है जब केंद्र सरकार ने अकादमी के कार्यों में इस प्रकार का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप किया है।
तिवारी ने बताया कि भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 12 मार्च 1954 को विभिन्न भारतीय भाषाओं और क्षेत्रों के साहित्य के विकास के लिए साहित्य अकादमी की स्थापना एक स्वायत्त संस्था के रूप में की थी। इसका औपचारिक उद्घाटन तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने किया था। साहित्य अकादमी हर वर्ष विभिन्न भारतीय भाषाओं में उत्कृष्ट साहित्यिक कृतियों को सम्मानित करती है। यह संस्था भारत की सांस्कृतिक और भाषाई एकता का प्रतीक है और भारतीय साहित्य के संरक्षण व संवर्धन में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
गोपालदादा तिवारी ने आरोप लगाया कि संस्कृति मंत्रालय ने अकादमी को भेजे गए नोट में 2025-26 के पुरस्कारों की “पुनर्रचना” मंत्रालय की सलाह से करने की बात कही, जो चौंकाने वाली है। मंत्रालय ने तथाकथित और अप्रासंगिक MoU की धाराओं का हवाला देकर पुरस्कारों की घोषणा रोक दी। इससे अकादमी की कार्यकारी परिषद को घोषणा स्थगित करनी पड़ी।
उन्होंने कहा कि यह सरकार द्वारा पुरस्कार प्रक्रिया पर “वेटो पावर” हासिल करने का प्रयास है। कई वरिष्ठ साहित्यकारों ने भी इस कदम का तीव्र विरोध किया है। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक द्वारा स्थगन को लेकर स्पष्टीकरण पाने के लिए किए गए कॉल और संदेशों का संस्कृति मंत्रालय ने तत्काल कोई उत्तर नहीं दिया, जो अत्यंत खेदजनक है।
मराठी साहित्य ने राष्ट्रीय स्तर पर सर्वोच्च सम्मान प्राप्त कर भारतीय साहित्य जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। सामाजिक यथार्थ, दर्शन, हास्य, उपन्यास और कविता—हर विधा में मराठी साहित्य समृद्ध रहा है। ऐसे में साहित्य अकादमी की स्वायत्तता पर आघात करने का यह प्रयास अस्वीकार्य है, ऐसा कांग्रेस ने स्पष्ट किया है।



