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एआई नहीं बल्कि ज्ञनोबा-तुकाराम के विचारों पर चलेगी दुनिया लेखक विश्वास पाटिल ने जताया विश्वास

विश्वधर्मी डॉ. विश्वनाथ दा. कराड का विशेष सम्मान

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३० वें दार्शनिक संतश्री ज्ञानेश्वर-तुकाराम स्मृती व्याख्यान श्रृंखला का समापन 

पुणे, 2 दिसंबरः एआई के युग में तकनीकी सीमाएं और बाधांए आती है. ऐसे समय इंसानी बुद्धिमत्ता जरूरी होने के साथ कल की दुनिया ज्ञानोबा-तुकाराम के विचारधारा पर चलेगी. यह विश्वास वरिष्ठ लेखक तथा ९९ वे अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलन के निर्वाचित अध्यक्ष विश्वास पाटिल ने जताया.

एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी, विश्वशांति केंद्र आलंदी और माइर्स एमआईटी पुणे के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ३०वें दार्शनिक संतश्री ज्ञानेश्वर-तुकाराम स्मृती व्यख्यान श्रृंखला के समापन में वे बतौर मुख्य अतिथि के रुप में बोल रहे थे.

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. विवेक सांवत ने निभाई. साथ ही एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष प्रो.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड, डब्ल्यूपीयू के अध्यक्ष डॉ. राहुल वि. कराड, कुलपति डॉ. रविकुमार चिटणीस, प्र कुलपति डॉ. मिलिंद पांडेे और डीन डॉ. मिलिंद पात्रे उपस्थित थे.

विश्वशांति के लिए अपना जीवन समर्पित करने के लिए विश्वधर्मी प्रो. डॉ. विश्वनाथ दा. कराड का यहां पर विशेष सम्मान हुआ. साथ ही योग गुरू अनंत कोंडे, मारुति पाडेकर गुरूजी का भी सम्मान हुआ. साथ ही पीस स्टडीज की ओर की सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन संस्कृत एंड आइआरएस स्टडीज पाठ्यक्रम का ब्रोशर जारी किया गया.

विश्वास पाटिल ने कहा, जिजाऊ ने छत्रपति शिवाजी महाराज को विश्वशांति की प्रेरणा दी. वे संतों के विचारों से प्रभावित थे. शक्ति, ज्ञान और भक्ति के संगम से स्वराज्य निर्माण करनेवाले शिवाजी महाराज ने हिंदवी स्वराज्य से मानव समूह का कल्याण किया. इसलिए वे सर्व श्रेष्ठ राजा बने.

डॉ. विवेक सावंत ने कहा, विज्ञान और अध्यात्मक के बीच अद्वैत की संकल्पना संतों की परंपरा है, जीसे डॉ. विश्वनाथ कराड ने आगे बढाया है. वर्तमान में मल्टीडिसिप्लिनरी शिक्षा सिस्टम की जरूरत है और इसी के जरीए भारत आत्मनिर्भर बनेगा. छात्रों को स्व की खोज करना चाहिए, उसी के जरीए विश्व में शांति आएगी.

प्रो.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने कहा, भारतीय संस्कृति, परंपरा और दार्शनिक का संदेश सारे विश्व में फैलाने आवश्यक है. ज्ञानोबा-तुकोबा यह एक अच्छी जिंदगी जीने का सार है. व्यक्ती को समृद्धशाली बनने के लिए संतों की विचारधारा ही एकमात्र तरीका है.

डॉ. आर.एम.चिटणीस ने स्वागत पर भाषण दिया. डॉ. मिलिंद पात्रे ने सूत्रसंचालन किया. डॉ. मिलिंद पांडे ने सभी का आभार माना.

 

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