60 to में करोड़ों की ठगी: मुंबई के मजदूरों को दिखाकर सुरक्षा ठेकेदार ने की धोखाधड़ी, 60 लाख का जुर्माना

60 to में करोड़ों की ठगी: मुंबई के मजदूरों को दिखाकर सुरक्षा ठेकेदार ने की धोखाधड़ी, 60 लाख का जुर्मान
पुणे। पुणे महानगरपालिका (PMC) के सुरक्षा विभाग में एक बड़े घोटाले का खुलासा हुआ है। मुंबई में कार्यरत करीब 200 संविदा मजदूरों को पुणे में सुरक्षा रक्षक बताकर करोड़ों रुपये की ठगी की गई। यह फर्जीवाड़ा ईगल सिक्योरिटी एंड पर्सोनल सर्व्हिसेस नामक ठेकेदार कंपनी द्वारा किया गया, जिसने नियमों का भी खुला उल्लंघन किया।
महानगरपालिका ने इस साल संविदा सुरक्षा रक्षकों की नियुक्ति के लिए 139.92 करोड़ रुपये की टेंडर प्रक्रिया जारी की थी। इसी दौरान छह महीने तक यह धोखाधड़ी चलाई गई। जानकारी मिलते ही PMC ने कार्रवाई करते हुए कंपनी से करोड़ों रुपये की वसूली की और नियमों के उल्लंघन पर 60 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।
फिलहाल PMC के मुख्यालय समेत अस्पतालों, उद्यानों, खेल मैदानों, श्मशानभूमियों, स्कूलों, कचरा केंद्रों और वसतिगृहों पर 1565 संविदा और 275 स्थायी रक्षक तैनात हैं। मुनाफा बढ़ाने के उद्देश्य से ठेकेदार कंपनी ने मुंबई के मजदूरों को पुणे के नाम पर दिखाया। इसके अलावा कंपनी ने पहचान परेड के लिए मजदूर न भेजना, वेतन कटौती करना और यूनिफॉर्म न देना जैसे गंभीर उल्लंघन किए, जिनके चलते पहले भी उस पर दो बार जुर्माना लगाया गया था।
राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप
इस कंपनी को एक बड़े राजनेता का समर्थन प्राप्त होने की बात सामने आई है, और इसी नेता के मित्र दल के पदाधिकारी ने ही इस घोटाले का भंडाफोड़ किया। इससे सत्ताधारी दो दलों के बीच आर्थिक रस्साकशी भी उजागर हुई है। प्रशासक राज के चलते PMC को राज्य सरकार के इशारों पर चलने का आरोप भी लगाया गया है।
पुणेकरों का मानना है कि कुछ ठेकेदारों को बचाव दिया जाता है और आम जनता के पैसों की लूट हो रही है। सुरक्षा विभाग प्रमुख राकेश विटकर ने बताया कि कंपनी को नोटिस देकर जुर्माना वसूला गया है और वह राशि PMC के खाते में जमा कर दी गई है।
इस बीच, नागरिकों ने मांग की है कि इस कंपनी को आगामी तीन वर्षों की निविदा प्रक्रिया से बाहर किया जाए और ब्लैकलिस्ट में डाला जाए। हालांकि, केवल जुर्माना लगाकर मामला शांत करने की प्रशासन की कोशिश पर सवाल उठ रहे हैं। अब यह चर्चा तेज हो गई है कि असली दोषी अधिकारी और उनके ऊपरी स्तर पर बैठे संरक्षकों पर कब कार्रवाई होगी?