
पुणे . समाज में सौहार्द, समझदारी और शांति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जमात-ए-इस्लामी हिंद (कैंप, पुणे) द्वारा आयोजित ‘विविधता में एकता ही सबसे बड़ी शक्ति’ विषय पर सर्वधर्मीय परिसंवाद दिनांक २७ अप्रैल २०२५ को पुणे के ऑर्बिट होटल, आपटे रोड, डेक्कन जिमखाना में बड़े उत्साह के साथ संपन्न हुआ।
इस परिसंवाद में विभिन्न धर्मों के प्रतिष्ठित विद्वान शामिल हुए। ‘जमात-ए-इस्लामी हिंद’ के उपाध्यक्ष सलीम इंजीनियर (नई दिल्ली), बुद्धिस्ट कल्चर स्टडी सेंटर (पुणे) के ज़ेन मास्टर भंते सुदस्सन, व्हीआईटी कॉलेज (पुणे) के निदेशक और इस्कॉन पुणे के उपाध्यक्ष राजेश जालनेकर तथा इग्नेशियस चर्च (खड़की) के सहायक पादरी फादर डेनिस जोसेफ (पुणे डायसिस) ने अपने विचार प्रस्तुत किए। चर्चा का संचालन डॉ. सलीम खान (मुंबई) ने प्रभावी ढंग से किया। कार्यक्रम का प्रास्ताविक भाषण करीमुद्दीन शेख ने दिया।
परिसंवाद में धर्मों के आपसी संबंध, ईश्वर की अवधारणा, विविधता का सौंदर्य, धार्मिक नेताओं की भूमिका और वर्तमान सामाजिक चुनौतियों पर गहन चर्चा हुई। सभी वक्ताओं ने एक स्वर से विविधता में एकता के महत्व को रेखांकित किया और परस्पर सम्मान, संवाद तथा सहयोग की भावना पर बल दिया। पहलगाम हल्ले मे मृत व्यक्तीयोंके लिये भावभीनी श्रद्धांजली अर्पित की गयी, और दहशत वाद की कड़ी निर्भत्सना की गयी.कार्यक्रम में विभिन्न धर्मों के नागरिक, युवा वर्ग और सामाजिक कार्यकर्ता बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का समापन सभी धर्मों के प्रतिनिधियों द्वारा ‘एकता का संदेश’ देकर किया गया। उपस्थित जनों ने ऐसे कार्यक्रम नियमित रूप से आयोजित होने की अपेक्षा व्यक्त की। इस अवसर पर अन्वर राजन, सुभाष वारे, डॉ. प्रवीण सप्तर्षी, डॉ.रमा सप्तर्षि,संदीप बर्वे, प्रो. नीलम पंडित, इब्राहिम खान, विलास किरोते आदि गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।
भंते सुदस्सन ने कहा, ‘हमारे मन की अवस्था और हमारे दैनिक कर्मों से ही सब कुछ घटित होता है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे कार्य मानवता के कल्याण के लिए हों। केवल करुणा व्यक्त करने से कार्य नहीं चलता।’सलीम इंजीनियर ने कहा, ‘ईश्वर सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान है। हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि हमारे हर कार्य का हिसाब रखा जा रहा है। एकता ईश्वर का वरदान है। अन्याय और भेदभाव को समाप्त करना धर्म का उद्देश्य है।’राजेश जालनेकर ने कहा, ‘सृष्टि निर्माण के बाद भी परमेश्वर ने स्वयं का अस्तित्व प्रकट नहीं किया। प्रेम और स्नेह का आदान-प्रदान ही परमेश्वर को पाने का मार्ग है।’फादर डेनिस जोसेफ ने कहा, ‘एक-दूसरे को समझना ही ईश्वर की शिक्षा है। क्षमाशीलता का होना अत्यंत आवश्यक है।’