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डॉक्टर ने कछुए की बचाई जान, दुर्लभ सर्जरी करके निकाले 4 अंडे
स्मॉल अॅनिमल क्लिनिक के डॉक्टरोंने लेप्रोस्कोपिक तकनीक का उपयोग करके की सर्जरी

भारत में किए गए कुछ चुनिंदा ऐसे ऑपरेशनों में से एक
पुणे :- एक कछुए की जान बचाने में पुणे स्थित स्मॉल अँनिमल क्लिनिक के डॉक्टरों के सफलता हासिल हुई हैं। यह कछुआ लंबे समय से एग-बाइंडिंग सिंड्रोम से पिडीत था। वह अंडे बाहर नही निकाल पा रहा था, जिस कारण उसे लिवर की सूजन औऱ खून की कमी थी। यह दुर्लभ सर्जरी का नेतृत्व पशु सर्जन डॉ. नरेंद्र परदेशी ने किया । लेप्रोस्कोपिक सर्जरी द्वारा उसके पेट में छोटा चीरा लगाकर ४ अंडे निकाले गए। यह कछुआ, जिसका नाम ‘श्री’ है, 1-2 महीनों से पीड़ा में थी। सर्जरी के बाद वह अब ठीक हो रही है। यह भारत में किए गए कुछ चुनिंदा ऐसे ऑपरेशनों में से एक है।
वह एक रेड-ईयर्ड स्लाइडर प्रजाति की मादा कछुआ है। श्री अचानक सुस्त हो गई थी, खाना नहीं खा रही थी और अंडे निकालने की कोशिश कर रही थी लेकिन निकाल नहीं पा रही थी। उसके मालिक, तलेगांव के पास सोमाटणे में रहने वाले मिस्टर और मिसेज नामदेव ने उसकी तबीयत बिगड़ती देखकर उसे अस्पताल इलाज के लिए लेकर आए। जांच में पता चला कि श्री के पेट में अंडे अटके हुए हैं और उसका लिवर बड़ा हो गया है। खून की जांच में हीमोग्लोबिन की कमी भी पाई गई। पहले दवा देकर अंडे निकालने की कोशिश की गई, लेकिन उससे कोई फायदा नहीं हुआ।
“श्री को इस हालत में देखना दिल तोड़ने वाला था। मालिक नामदेव ने कहा। “वह हमेशा जिंदादिल रही है, लेकिन अचानक वह इतनी कमजोर और लाचार दिखने लगी। वह अंडे निकालने की कोशिश कर रही थी, लेकिन निकाल नहीं पा रही थी। उसे संघर्ष करते देखना और कुछ न कर पाना बेहद पीड़ादायक था।”
एग-बाइंडिंग सिंड्रोम एक ऐसी स्थिती हैं जिसमें कछुए अंडों को स्वाभाविक रूप से बाहर नहीं निकाल पाते। अल्ट्रासाउंड में उसका लिवर बढ़ा हुआ दिखा और उसके शरीर में पूरी तरह से विकसित अंडे भी नजर आए। खून की जांच में हीमोग्लोबिन की कमी भी पाई गई। पहले उसे एपिडोसिन इंजेक्शन देकर अंडे बाहर निकालने की कोशिश की गई, लेकिन वह प्रयास विफल रहा। इसके बाद उसे हाथ से खिलाया गया और लगातार निगरानी रखी गई। ऑपरेशन से पहले फिर से ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड किया गया। अल्ट्रासाउंड से पुष्टि हुई कि श्री को अंडे रुकावट की समस्या है, लेकिन उसका दिल सामान्य रूप से काम कर रहा था, जो ऑपरेशन से पहले एक अच्छा संकेत था।

पशु सर्जन डॉ. नरेंद्र परदेशी ने कहॉं, २१ जुलाई २०२५ को श्री का ऑपरेशन किया गया। सर्जरी से पहले उसे सावधानीपूर्वक ट्यूब डालकर ऑक्सीजन और एनेस्थीसिया दिया गया। उसका वजन १.५ किलोग्राम था। उसकी शारीरिक स्थितियों की निगरानी बीपी डॉप्लर और SPO२ सेंसर से की गई। गर्मी बनाए रखने के लिए उसके नीचे हीटिंग पैड रखा गया। सर्जरी के दौरान उसके पिछले पैर के पास से एक छोटा चीरा लगाकर चार अंडे निकाले गए। अच्छी बात यह रही कि उसका खोल (शेल) नहीं काटना पड़ा, जिससे उसे जल्दी ठीक होने में मदद मिली। ऑपरेशन के एक घंटे के अंदर ही वह होश में आ गई और घर भेज दी गई। ऑपरेशन के बाद उसे ३ से ५ दिनों तक इंजेक्शन दिए गए ताकि वह जल्दी ठीक हो सके।”
डॉ. परदेशी ने बताया, आमतौर पर ऐसी स्थिति में कछुए के शेल को काटना पड़ता है, जो कि जोखिम भरा होता है क्योंकि शेल को ठीक होने में 6-8 महीने लगते हैं और इस दौरान पानी में रहने से इन्फेक्शन का खतरा रहता है। लेकिन इस लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में शेल को काटने की जरूरत नही पडी। श्री की तबीयत अब बेहतर है। वह अब फिर से खाना खा रही है, घूम रही है और एक्टिव हो गई है। उसे कुछ दिन इंजेक्शन और दवाएं दी गईं ताकि वह पूरी तरह ठीक हो जाए।
श्री की मालकिन, मिसेज नामदेव ने भावुक होते हुए कहा, “श्री को दर्द में देखना और उसे ठीक से खाना या चलना न आते देखना हमारे लिए डरावना था। क्लिनिक ने हर बात हमें अच्छे से समझाई और उसका बेहतरीन इलाज किया। श्री की जान बचाने के लिए हम डॉ. परदेशी और उनकी पूरी टीम के बहुत आभारी हैं। अब वह फिर से खाने लगी है, ऐसा लग रहा है जैसे हमारी श्री वापस लौट आई है।