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हिंदुओं की कथित बदनामी’ पर बीजेपी-शिंदे सेना का हंगामा सत्ता की नाकामी छिपाने का प्रयास – कांग्रेस का हमला

सरकारी वकील बदलना और सबूत नष्ट करना क्या सोची-समझी साजिश थी..? : गोपालदादा तिवारी

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पुणे. मुंबई बम धमाकों के बाद मालेगांव बम विस्फोट मामले में हिंदुत्ववादी संगठनों से जुड़े आरोपियों को एनआईए की विशेष अदालत ने ‘साक्ष्यों के अभाव’ में बरी करने पर महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता गोपालदादा तिवारी ने तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि सत्ता में बैठी बीजेपी और ‘शाह प्रायोजित शिंदे सेना’ का यह हंगामा केवल अपनी नाकामी छिपाने का प्रयास है।

तिवारी ने कहा कि मालेगांव बम धमाकों की जांच तत्कालीन एटीएस प्रमुख और ईमानदार अधिकारी हेमंत करकरे ने की थी। उस समय ऑडियो क्लिप्स, इलेक्ट्रॉनिक सामग्री और आरोपियों के बयान समेत कई मजबूत सबूत सामने आए थे। 2014 के बाद सत्ता बदलते ही सरकारी वकील रोहिणी सालीयान ने साफ कहा था कि एनआईए की ओर से उन पर दबाव बनाया जा रहा है। इसके बाद नए सरकारी वकीलों की नियुक्ति किस मंशा से की गई, यह बड़ा सवाल है।

तिवारी ने याद दिलाया कि सितंबर 2011 में राज्यों के पुलिस प्रमुखों और इंटेलिजेंस ब्यूरो की बैठक में तत्कालीन गृहमंत्री सुशीलकुमार शिंदे ने स्पष्ट किया था कि कुछ तत्व ‘भगवा आतंकवाद’ फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। उस समय असीमानंद जैसे आरोपियों का कबूलनामा भी सामने आया था।

कांग्रेस ने कहा कि देश के गृहमंत्री का बयान किसी पार्टी का राजनीतिक मत नहीं, बल्कि तत्कालीन परिस्थितियों का आकलन होता है। आज अदालत ने सबूतों के अभाव में आरोपियों को बरी किया, तो भाजपा द्वारा ‘भगवा आतंकवाद’ बयान पर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश करना, केवल सत्ता की विफलता और जनता का ध्यान भटकाने का प्रयास है।

कांग्रेस ने तंज कसते हुए कहा कि “2014 से 2019 तक देश और राज्य में आपकी एकछत्र सत्ता रही, फिर भी आप एक भी एफआईआर दर्ज नहीं कर पाए और न ही इस मुद्दे पर एक शब्द बोले। उस समय सरकारी वकील बदलकर सबूत नष्ट करने की कोशिश थी क्या?”

कांग्रेस ने कहा कि हमें हिंदू-विरोधी बताने वाले भूल जाते हैं कि भारतीय संस्कृति पर आधारित ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ जैसी धारावाहिकें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के समय ही दूरदर्शन पर लाई गई थीं, जिन्हें हर रविवार देशभर में घर-घर देखा गया।

कांग्रेस ने सवाल उठाया कि महायुति सरकार मुंबई बम धमाके के फैसले के खिलाफ तो अपील करेगी, लेकिन मालेगांव विस्फोट फैसले पर अपील नहीं करेगी? क्या धर्मनिरपेक्षता का दावा करने वाली सत्ता में शामिल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को यह मंजूर है?

कांग्रेस ने आगे कहा कि जब केंद्रीय जांच एजेंसियों ने आरोपियों के लिए मृत्युदंड की मांग की थी, तब एनआईए की विश्वसनीयता दांव पर लगी थी। ऐसे में उच्च न्यायालय में अपील करना नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप अपेक्षित है।

कांग्रेस ने सवाल उठाया कि क्या सरकार जाति और धर्म देखकर अपील का निर्णय लेगी? क्या यह मंत्री पद की शपथ के खिलाफ नहीं होगा? और क्या निर्दोष नागरिकों की हत्या के मामले में न्याय मिलेगा? इस पर देश की जनता की निगाहें टिकी हैं।

 

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