
पुणे। शहर में विकास कार्यों के नाम पर हो रही अंधाधुंध वृक्षतोड़ अब सीधे-सीधे “लकड़ी का माल बंटवारा” करने तक पहुंच चुकी है। नगर रोड–वडगांवशेरी क्षेत्रीय कार्यालय ने 3,618 पेड़ों की कटाई की अनुमति दी थी। इसके बदले 44,097 पेड़ लगाना अनिवार्य था, लेकिन हकीकत में सिर्फ 2,595 पेड़ लगाए गए। बाकी के 41,502 पेड़ या तो हवा में गायब हो गए या भ्रष्ट अधिकारियों की जेबों में दब गए – ऐसा सवाल पर्यावरण प्रेमियों ने उठाया है।
यह आंकड़े सूचना के अधिकार (RTI) से सामने आए हैं। 162 आवेदकों को पेड़ काटने की अनुमति दी गई, लेकिन उनमें से केवल 4 ने भरपाई के तहत पेड़ लगाकर रिपोर्ट सौंपी। बाकी 158 आवेदकों ने न पेड़ लगाए, न रिपोर्ट दी और न ही उन पर कोई कार्रवाई की गई। शर्तों का खुलेआम उल्लंघन होने के बावजूद महापालिका अधिकारी आंखें मूंदकर बैठे रहे, ऐसा आरोप लगाया जा रहा है।
हाल ही में खराड़ी में गेरा डेवलपमेंट की जमीन पर सुभाभूल पेड़ों की अवैध कटाई उजागर हुई थी। उस पर निगम ने सिर्फ नोटिस थमा कर मामला रफा-दफा कर दिया। इसी पृष्ठभूमि में अब नगर रोड क्षेत्रीय कार्यालय का यह वृक्षतोड़ घोटाला सामने आया है। पर्यावरण कार्यकर्ता करीम शेख का सवाल सीधे मुद्दे पर है – “भरपाई के 41,502 पेड़ आखिर हवा में गायब हुए या भ्रष्टाचार की गर्त में गाड़ दिए गए?”
जब इस पर सहायक आयुक्त शीतल वाकड़े से पूछा गया तो उन्होंने जिम्मेदारी टाल दी और कहा – “यह जानकारी उद्यान विभाग से लें।” इतना कहकर उन्होंने फोन बंद कर दिया। जिम्मेदारी की कुर्सी पर बैठकर पल्ला झाड़ लेना प्रशासनिक शैली का ताजा उदाहरण माना जा रहा है।
महापालिका दूसरी ओर यह दावा कर रही है कि शहर में पेड़ों की संख्या बढ़ी है। 2013-14 में 38 लाख पेड़ थे, जो अब 57 लाख बताए जाते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि बारिश का स्वरूप बदल चुका है, वडगांवशेरी में सड़कें नालों में बदल जाती हैं, पानी घरों में घुस जाता है। विकास कार्यों के नाम पर हुई वृक्षतोड़ से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ा है, जिसका खामियाजा हर साल नागरिक भुगत रहे हैं।
नागरिकों का सवाल भी साफ है – पेड़ काटने के लिए 10 हजार की जमानत वसूली जाती है, लेकिन अगर भरपाई के पेड़ नहीं लगाए गए तो नोटिस देकर मामला दबा दिया जाता है। आखिर ये नोटिस किसके फायदे के लिए हैं? पेड़ नहीं लगे तो पैसा कहां गया? और भ्रष्ट अधिकारियों को जवाबदेह ठहराएगा कौन?
नगर रोड–वडगांवशेरी का वृक्षतोड़ प्रकरण शहर की ‘हरित चादर’ पर सीधा हमला है। पर्यावरण प्रेमियों की मांग है कि इस मामले में स्वतंत्र जांच हो और दोषी अधिकारियों पर आपराधिक मामले दर्ज किए जाएं।



