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स्वामी विवेकानंद ने धर्म और विज्ञान के समन्वय की आवश्यकता बताई – इति मंदार ओक

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स्वामी विवेकानंद के विचारों में धार्मिकता के साथ-साथ वैज्ञानिकता और व्यावहारिक दृष्टिकोण भी था। उन्होंने हिंदू धर्म की रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ते हुए यह बताया कि प्राचीन अद्वैत सिद्धांत पर आधारित सनातन हिंदू धर्म वास्तव में एक विज्ञाननिष्ठ धर्म है। उन्होंने भारत के पुनर्निर्माण के लिए वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल दिया।
भारत के गौरव को पुनः स्थापित करने के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले इस अद्वितीय संन्यासी का मानना था कि आत्मनिर्भरता और शिक्षा ही राष्ट्रनिर्माण की सच्ची कुंजी हैं। विवेकानंद एक सच्चे राष्ट्रभक्त थे जिन्होंने भारत के उज्जवल भविष्य का स्वप्न देखा। उन्होंने धर्म और विज्ञान का समन्वय करते हुए पश्चिम से विज्ञान भारत में लाने का कार्य किया — मानव कल्याण के लिए वे सच्चे विश्वमानव थे।
“प्रत्येक भारतीय को स्वामी विवेकानंद के विचारों को आचरण में लाना चाहिए, यही सच्चा राष्ट्रप्रेम होगा,” ऐसा मत मंदार ओक ने व्यक्त किया।
वे “स्वामी विवेकानंद जीवनज्योत संस्था” तथा “सहकार भारती, पुणे” द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित “स्वामी विवेकानंद का जीवनचरित्र” विषय पर ज्ञानप्रबोधिनी, उपासनामंदिर में आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे।
इस अवसर पर डॉ. संजय उपाध्ये मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।कार्यक्रम में एम. डी. देशपांडे (अध्यक्ष, स्वामी विवेकानंद जीवनज्योत संस्था), श्रीकांत कुलकर्णी(सचिव), *सतीश टंकसाले (कोषाध्यक्ष), जयंत पेशवे, श्रीमती जागृति कणेकर, श्रीमती माते*, श्रीमती कामतकर, गिरीश भवाळकर (प्रमुख, सहकार भारती पुणे विभाग), सीए दिनेश गांधी, और हेमंत मोरे उपस्थित थे।
श्री देशपांडे** ने कहा, “मुझे अपने बंधुओं की सेवा करने दो’ — इस विचार से प्रेरित होकर गोवा के स्वतंत्रता सेनानी पद्मश्री मोहन रानडे ने ‘स्वामी विवेकानंद जीवनज्योत संस्था’ की स्थापना की। पिछले 23 वर्षों से यह संस्था शैक्षणिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं व्यक्तित्व विकास के क्षेत्र में सेवा कर रही है।”
श्रीकांत कुलकर्णी ने बताया कि यह व्याख्यान स्वामी विवेकानंद के प्रेरणादायी विचार और जीवनचरित्र जनसामान्य तक पहुँचाने के उद्देश्य से आयोजित किया गया।
डॉ. संजय उपाध्ये ने कहा, स्वामी विवेकानंद ने ‘मैं’ और ‘मेरा’ की संकीर्ण सोच को त्यागकर ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ — समस्त विश्व एक परिवार है — यह विचार दिया। नई पीढ़ी के लिए विवेकानंद के विचारों को सरल और समझने योग्य रूप में प्रस्तुत करना आवश्यक है।”
कार्यक्रम का संचालन श्रीमती वसुधा बोरकर ने किया तथा आभार प्रदर्शन गिरीश भवाळकर ने किया।

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