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वटपौर्णिमा: परंपरा, प्रकृति और स्त्रीशक्ती का संगम वट सावित्री व्रत आज

आज सुबह 11:35 बजे से अगले दिन 11 जून को दोपहर 1:13 बजे तक मूहर्त

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पुणे/10 जून 2025: ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को वटपौर्णिमा या वट सावित्री व्रत के रूप में महाराष्ट्र और गोवा सहित देश के विभिन्न हिस्सों में श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। यह पर्व विवाहित महिलाओं द्वारा पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की कामना हेतु वटवृक्ष की पूजा कर मनाया जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि भारतीय संस्कृति में स्त्री की दृढ़ निष्ठा, प्रकृति के प्रति आदर और पारिवारिक मूल्यों का दर्पण भी है।वट पूर्णिमा व्रत के लिए पूर्णिमा तिथि का शुभ मूहर्त आज सुबह 11:35 बजे से अगले दिन 11 जून को दोपहर 1:13 बजे तक  होगी।आज सुहागिन महिलाएं अपने पति के लम्बी आयु की कामना करती है।

महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारतीय राज्यों में विवाहित महिलाएँ उत्तर भारतीय महिलाओं की तुलना में 15 दिन बाद वट सावित्री व्रत रखती हैं। हालाँकि, दोनों कैलेंडर के लिए व्रत के पीछे की कहानी समान है।

 

पौराणिक कथा से जुड़ा व्रत

 

वटपौर्णिमा व्रत का पौराणिक और आध्यात्मिक संबंध सावित्री-सत्यवान की कथा से है। मान्यता है कि सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प और निष्ठा से यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस प्राप्त किए थे। इस कथा का संदेश यह है कि प्रेम, विश्वास और नारी की आंतरिक शक्ति से मृत्यु जैसे संकट को भी टाला जा सकता है। महिलाएं इस दिन यह कामना करती हैं कि उन्हें सातों जन्मों तक वही पति प्राप्त हो।

 

वटवृक्ष का आध्यात्मिक महत्व

हिंदू धर्म में वटवृक्ष (बरगद) को अत्यंत पवित्र और अमरत्व का प्रतीक माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वटवृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु और अग्रभाग में शिव का वास माना जाता है। भगवान शिव वटवृक्ष के नीचे दक्षिणामूर्ति रूप में ज्ञान का उपदेश देते हैं। वेदों और उपनिषदों में इसे न्यग्रोध (नीचे की ओर बढ़ने वाला) कहा गया है।मार्कंडेय पुराण में प्रलयकाल के दौरान श्रीकृष्ण को वटवृक्ष के पत्ते पर तरंगित होते दिखाया गया है, जो इस वृक्ष की शाश्वतता और आश्रयदायी स्वरूप को दर्शाता है। रामायण के पंचवटी प्रसंगों में भी वटवृक्ष का उल्लेख है, वहीं महाभारत में ज्योतिसर नामक स्थान पर श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को गीता उपदेश वटवृक्ष के नीचे देने की मान्यता है।

 

परंपरा से जुड़ी प्रकृति पूजा

वटपौर्णिमा पर्व के माध्यम से भारतीय नारी सिर्फ अपने पति के लिए नहीं, बल्कि समाज और प्रकृति के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी भी निभाती है। वटवृक्ष की पूजा, उसकी परिक्रमा, कच्चा सूत बांधने की परंपरा, यह सभी प्रकृति के संरक्षण और उसके महत्व की ओर संकेत करते हैं।

 

 

 

 

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