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समय रहते इलाज करना जरुरी – बेस्ट ऑफ ब्रसेल्स में विशेषज्ञों की सलाह

बढ़ते एएमआर के कारण यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन का बढता खतरा

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१३ वें वार्षिक अंतरराष्ट्रीय बेस्ट ऑफ ब्रसेल्स सिम्पोजियम ऑन इंटेंसिव केयर एंड इमरजेंसी मेडिसिन में विशेषज्ञों ने भारत में जटिल यूटीआई के बढ़ते मामलों पर डाला गया प्रकाश 

 १३ वें बेस्ट ऑफ ब्रसेल्स सम्मेलन में ७०० से अधिक क्रिटिकल केयर विशेषज्ञों ने लिया भाग 

पुणे – पुणे में आयोजित प्रतिष्ठित 13वें वार्षिक अंतरराष्ट्रीय बेस्ट ऑफ ब्रसेल्स सिम्पोजियम ऑन इंटेंसिव केयर एंड इमरजेंसी मेडिसिन में देशभर के प्रमुख विशेषज्ञों ने भारत में जटिल यूटीआई और एएमआर (एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस) के बढ़ते मामलों पर जोर देते हुए प्रभावी उपचार विकल्पों की जरूरत क्या हैं इस विषय पर चर्चा की।

हालांकि लोगों को एंटीबायोटिक्स के अनियंत्रित उपयोग से बचने की सलाह दी जाती रही है, परंतु विशेषज्ञों — डॉ. कपिल झिर्पे, डॉ. शिरीष प्रयाग, डॉ. सुभल दीक्षित, डॉ. दीपक गोविल और डॉ. बालाजी ने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में एंटीबायोटिक्स का अनियंत्रित उपयोग करना सेहत के लिए किस तरह हानिकारक हैं। इस बारे में लोगों को जागरूक किया।

भारत में जटिल यूटीआई के बोझ पर बात करते हुए, बेस्ट ऑफ ब्रसेल्स सिम्पोजियम के ऑर्गनाइजिंग चेयरपर्सन डॉ. शिरीष प्रयाग ने कहा, “युटीआय की समस्या भारत में सबसे आम जीवाणु संक्रमण हैं। डल्ब्लूएचओ के अनुसार, बैक्टीरियल एएमआर के कारण विश्वभर में ४९.५ लाख लोगों को अपनी जान गवानी पडी यह सीधे तौर पर १२.७ लाख मौतों के लिए जिम्मेदार है। ई. कोलाई और क्लेब्सीएला निमोनिया जटिल यूटीआई के सबसे आम कारण हैं। जटिल यूटीआई से ग्रसित मरीजों को सर्जरी, रीनल रिप्लेसमेंट, आईसीयू देखभाल और कभी-कभी वेंटिलेशन की आवश्यकता पड़ती है। बढ़ते एएमआर के चलते जटिल यूटीआई का इलाज करना अत्यंत कठिन हो गया है, जिससे मरीजों को लंबे समय तक अस्पताल में रहना पड़ता है।”

उन्होंने आगे कहा, “हमें नई एंटीबायोटिक्स खोजनी होंगी। एएमआर का सबसे बड़ा कारण अतिरिक्त एंटीबायोटिक्स का सेवन करना है। एंटीबायोटिक्स विशेषज्ञ द्वारा समय पर और बिना किसी भ्रम के दी जानी चाहिए। जटिल मामलों में पेशेंट के यूरिन का कल्चर होना चाहिए, उसमें से कीटाणुओं को लैब में विभिन्न एंटीबायोटिक्स से जांच करनी चाहिए कि कौन-सी दवा सबसे प्रभावी है। वही विशेष एंटीबायोटिक उपयोग करनी चाहिए।”

एमबीबीएस शिक्षा में कौनसी कमी दिखाई दे रही हैं इसपर जोर देते हुए डॉ. शिरीष प्रयाग ने कहा,“एमबीबीएस कोर्स को नियमित रूप से अपडेट करना चाहिए ताकि मौजूदा एएमआर की जानकारी इसमें शामिल की जा सके। हर क्षेत्र में रेजिस्टेंस पैटर्न अलग-अलग होता है। वेल्लोर में जो होता है, वह पुणे या दिल्ली में नहीं होता। इसलिए नए डॉक्टरों को स्थानीय रेजिस्टेंस और सेंसेटिविटी के बारे में भी पढ़ाया जरुरी हैं। सरकार को एंटीबायोटिक बिक्री पर सख्त निगरानी रखनी चाहिए।”

बढ़ते रेजिस्टेंस स्तर पर जोर देते हुए बेस्ट ऑफ ब्रसेल्स सिम्पोजियम के ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. कपिल झिर्पे ने कहा,“जब ई. कोलाई और अन्य रोगजनक कार्बापेनेम जैसी एंटी-इंफेक्टिव्स के प्रति रेजिस्टेंट हो जाते हैं, तो इसे कार्बापेनेम रेजिस्टेंट एंटरोबैक्टीरेलीज (CRE) कहा जाता है। भारत में सीआरई संक्रमण से मृत्यु दर २०% से लेकर ५४.३% तक होती है।”

बेस्ट ऑफ ब्रसेल्स सिम्पोजियम के जॉइंट ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. सुभल दीक्षित ने कहा,“बढ़ती एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस (प्रतिरोधक क्षमता) के कारण इलाज करना मुश्किल हो जाता है और इलाज का नतीजा भी तय नहीं रहता, यहां तक कि सामान्य यूरिन इन्फेक्शन (सिस्टाइटिस) में भी। एंटीबायोटिक्स तभी शुरू करनी चाहिए जब कल्चर टेस्ट और एंटीबायोग्राम रिपोर्ट से यह साफ हो जाए कि कौन सी दवा असरदार है। हम अस्पताल और समाज में जागरूकता बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन डॉक्टरों और स्टाफ के लिए ट्रेनिंग भी जरूरी है। एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल हमेशा सावधानी से और डॉक्टर की सलाह के बाद ही करना चाहिए।

मेदांता अस्पताल के क्रिटिकल केयर एंड एनेस्थीसिया विभाग के डायरेक्टर डॉ. दीपक गोविल ने कहा,“भविष्य में ऐसी रिसर्च होनी चाहिए जिससे टार्गेटेड (सटीक) दवाइयां बन सकें और एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस और जटिल यूरिन इन्फेक्शन के बढ़ते मामलों पर काबू पाया जा सके। भारत में इस समस्या से लड़ने के लिए कई तरीकों की जरूरत है, जैसे जागरूकता बढ़ाना, नई दवाएं बनाना, साफ-सफाई में सुधार करना और एंटीबायोटिक के गलत इस्तेमाल को रोकना।”

सीएमसी वेल्लोर के क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर और आईएनएसएआर नेटवर्क के प्रमुख सदस्य डॉ. वी. बालाजी ने कहा,“जटिल यूटीआई के इलाज में एएमआर का महत्वपूर्ण प्रभाव देखा गया है। अब तक, भारत में कभी भी कोई नई दवा नहीं खोजी गई थी, चाहे वह कैंसर, हाइपरटेंशन, डायबिटीज या एंटीबायोटिक्स के लिए हो। लेकिन पहली बार, चेन्नई के एक मेडिकल केमिस्ट ने सेफेपाइम एनमेटाजोबैक्टम नामक एक नई एंटीबायोटिक की खोज की है। आमतौर पर विदेशों में विकसित दवाएं भारत में आने में ५-६ साल लगते हैं। अपनी जरुरतें पुरी होने के बाद वह दवाईयां भारत को देते हैं। और जब भारत में आती हैं, तब उनकी कीमत ३-५ गुना जादा होती है। लेकिन अब दवा भारत में बनी है। यह अत्यधिक प्रभावी और किफायती है, खासकर जटिल यूटीआई के इलाज में यह काफी फायदेमंद दवाई हैं।”

 

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