
पुणे, –
बालरंजन केंद्र में “माझी अभिजात मराठी” उपक्रमांतर्गत आयोजित विशेष व्याख्यान में प्राचार्य श्याम भुर्के ने मराठी भाषा की गौरवशाली परंपरा, इतिहास और साहित्यिक समृद्धीवर आधारित विचार सादर किए। कार्यक्रम का उद्देश्य बच्चों को मातृभाषा मराठी के ऐतिहासिक, भावनिक आणि बौद्धिक महत्व से परिचित कराना था।
प्राचार्य भुर्के ने बताया कि मराठी भाषा की जड़ें अत्यंत प्राचीन हैं। सातवाहन काल के दौरान जब किसान और श्रमिक कार्यरत रहते थे, तब वे मराठी में गीत गाते थे। मराठी भाषा का पहला लिखित प्रमाण सन 1018 में चामुंडराय द्वारा कुंडल गांव के विष्णु मंदिर की तुळई पर कोरले गए वाक्य “वांछितो विजयी होई बा” के रूप में मिलता है।
भुर्के सर ने बताया कि संत ज्ञानेश्वर ने गीता को मराठी में सरल रूप में प्रस्तुत किया। उनकी रचना ‘ज्ञानेश्वरी’ की विशेषता उसकी साडेतीन ओवी शैली है। संत एकनाथ ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया और भारूड के माध्यम से जनसामान्य तक संदेश पहुँचाया। संत तुकाराम ने अपने अभंग के माध्यम से मराठी साहित्य को समृद्ध किया।
मराठी भाषा को संस्कृत से लगभग 70% शब्द प्राप्त हुए हैं, वहीं कन्नड़, तेलुगु, अंग्रेजी और पोर्तुगीज भाषाओं के भी अनेक शब्द मराठी में समाहित हुए हैं। स्वातंत्र्यवीर सावरकर द्वारा गढ़े गए कई मराठी शब्द आज भी प्रचलित हैं।
भुर्के सर ने उपस्थित बच्चों को “श्यामची आई” पुस्तक की मार्मिक कहानी और प्र. के. अत्रे की “दिनूचे बील” कथा के माध्यम से मराठी भाषा की कोमलता और भावनात्मक गहराई को समझाया। उन्होंने समर्थ रामदास द्वारा दासबोध में वर्णित मूर्खों की लक्षणें भी सुनाईं, जिससे बच्चों और अभिभावकों में उत्सुकता और हर्ष की लहर दौड़ गई।
उन्होंने यह भी जानकारी दी कि कराची शहर में आज भी एक संपूर्ण मराठी माध्यम की शाला सक्रिय है। उन्होंने मातृभाषा में शिक्षा के वैज्ञानिक लाभ बताते हुए कहा कि यह मस्तिष्क के विकास के लिए अत्यंत उपयोगी है।
कार्यक्रम का प्रास्ताविक व आभारप्रदर्शन माधुरी सहस्रबुद्धे ने किया, जबकि वर्षा बरीदे ने मुख्य अतिथि का परिचय कराया। इस अवसर पर गीता भुर्के की विशेष उपस्थिति रही।
– जन भारत समाचार