पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के आदेश की अवमानना!
गरीबों के घर नहीं गिराए जाएँगे - डॉ. हुलगेश चलवादी

‘इंदिरानगर’ निवासियों को वायुसेना का नोटिस’
पुणे:-‘गरीबी हटाओ’ का नारा देकर गरीबों को मुख्यधारा में लाने वाली देश की पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के आदेश को रक्षा विभाग भूल गया है। वायुसेना ने आज़ादी से पहले की ‘बरमशेल’ और वर्तमान ‘इंदिरानगर’ बस्ती को खाली करने का नोटिस भेजा है। यह गरीबों के घर छीनने की कोशिश है। बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश महासचिव और पश्चिम महाराष्ट्र ज़ोन के मुख्य प्रभारी डॉ. हुलगेश चलवादी ने आज (बुधवार) को आश्वासन दिया कि किसी भी हालत में झुग्गीवासियों के साथ अन्याय नहीं होगा। प्रशासन इंदिरानगर को तोड़ने की कोशिश न करे; अन्यथा हम संवैधानिक तरीकों से इसका कड़ा विरोध करेंगे,ये चेतावनी डॉ. चलवादी ने दी।
इस संबंध में डॉ. चलवादी ने राज्यपाल, मुख्यमंत्री, नगरीय विकास विभाग के मुख्य सचिव, पुणे संभागीय आयुक्त, जिला कलेक्टर और महानगरपालिका के नगर अभियंता प्रशांत वाघमारे को ज्ञापन लिखकर गरीबों को न्याय दिलाने की अपील की है। इस मौके पर डॉ.चलवादी ने बताया कि समय मिलने पर वे उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रपति से भी अपील करेंगे।
यह बस्ती दशकों से यहाँ बसी हुई है। देश को आज़ादी मिलने के बाद, रक्षा विभाग ने इस बस्ती को खाली कराने के प्रयास किए थे। हालाँकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुणे दौरे के दौरान, तत्कालीन नगरसेवक शरद रणपिसे, मरिअप्पा चलवाड़ी, तात्या ओव्हाल, गणपत धोत्रे और अन्य नेताओं ने इंदिरा गांधी के समक्ष यह मुद्दा उठाया था। स्वर्गीय इंदिराजी द्वारा दिए गए तत्काल आदेश के बाद, 1980 में इस बस्ती का पुनर्वास किया गया। डॉ. चलवादी ने आश्चर्य व्यक्त किया कि उक्त नोटिस तब भेजा गया जब यह बस्ती सरकार द्वारा स्वीकृत विकास योजना में शामिल थी।
पिछले चार दशकों से यहाँ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, खानाबदोश समुदाय और अल्पसंख्यक वर्ग के परिवार रह रहे हैं और उनकी आजीविका का मुख्य स्रोत मज़दूरी और छोटे-मोटे व्यवसाय हैं। सर्वोच्च न्यायालय के नियमों के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी ज़मीन पर 12 साल से ज़्यादा समय से रह रहा है, तो वह ज़मीन उसकी संपत्ति मानी जाती है, तो यह बस्ती अनधिकृत कैसे हो सकती है? डॉ. चलवाड़ी ने सवाल उठाते हुए कहा कि यह नोटिस क़ानूनी प्रक्रिया के ख़िलाफ़ है और नागरिकों के अधिकारों का हनन है।