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कामकाजी महिलाओं में बढ़ रही है धूम्रपान की आदतें

तनाव कम करने के लिए ले रही हैं सिगरेट का सहारा

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लगभग २०% महिलाएं काम के तनाव के कारण सिगरेट पीती हैं, जिससे भविष्य में उन्हें फेफड़ों के कैंसर का गंभीर खतरा हो सकता है।

हर महीने २५ से ३५ वर्ष की उम्र की १० में से ३ कामकाजी महिलाएं खांसी की शिकायत लेकर डॉक्टरों के पास इलाज के लिए जाती है।

पुणे: तनाव आज के समय में कामकाजी महिलाओं के जीवन का हिस्सा बन चुका है, और इसी वजह से कई महिलाएं धूम्रपान जैसी हानिकारक आदते हो रही हैं। लगभग २०% महिलाएं काम के तनाव के कारण सिगरेट पीती हैं, जिससे भविष्य में उन्हें फेफड़ों के कैंसर का गंभीर खतरा हो सकता है। इन महिलाओं को फेफड़ों से जुड़ी दीर्घकालिक बीमारियों का भी सामना करना पड़ सकता है। इससे बचने के लिए धूम्रपान छोड़ना बेहद जरूरी है।
विश्व फेफड़ा कैंसर दिवस के मौके पर विशेषज्ञों ने महिलाओं से अपील की है कि वे अपने फेफड़ों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें और धूम्रपान से दूरी बनाएं। हर महीने २५ से ३५ वर्ष की उम्र की १० में से ३ कामकाजी महिलाएं खांसी की शिकायत लेकर डॉक्टरों के पास इलाज के लिए जाती हैं। फेफड़ों के कैंसर से बचने के लिए नियमित जांच और इलाज बहुत जरूरी है।
काम का बढ़ता तनाव और उसे कम करने के लिए धूम्रपान का सहारा लेना एक खतरनाक प्रवृत्ति बन चुकी है। इससे फेफड़ों का कैंसर, क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), दमा और ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि धूम्रपान से जुड़ी फेफड़ों की समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं, इसलिए समय रहते इस आदत को छोड़ना ही समझदारी है। समय पर पहचान, इलाज और जागरूकता ही इसका समाधान है।
पुणे स्थित अपोलो स्पेक्ट्रा अस्पताल के इंटरनल मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ. आदित्य देशमुख ने कहा आजकल काम की डेडलाइन, लंबे कार्य घंटे, अपेक्षाओं का दबाव, घर और ऑफिस की ज़िम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाए रखना इन सभी वजहों से महिलाओं में तनाव बढ़ रहा है। पर्याप्त आराम न मिलने की वजह से थकान, चिंता, नींद की परेशानी, सिरदर्द, मांसपेशियों में खिंचाव और मूड स्विंग्स जैसी समस्याएं सामने आ रही हैं। कुछ महिलाएं तनाव कम करने या ऑफिस में एक्टिव रहने के लिए धूम्रपान करना शुरू कर देती हैं। सिगरेट पीना फेफड़ों को गंभीर नुकसान पहुंचाता है। धीरे-धीरे यह फेफड़ों की कोमल परतों को क्षति पहुंचाता है, जिससे उनकी कार्यक्षमता घटती है और सांस लेने में दिक्कत होती है। सिगरेट में मौजूद हानिकारक रसायन सीधे तौर पर फेफड़ों के कैंसर, ब्रोंकाइटिस, दमा और सीओपीडी जैसी बीमारियों को जन्म देते हैं।
डॉ. देशमुख आगे कहॉ, ऑफिस में महिलाओं को अत्यधिक तनाव का सामना करना पड़ता है। ऐसे में धूम्रपान उन्हें एक तात्कालिक समाधान लग सकता है, लेकिन वास्तव में यह लंबे समय में गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है, यह समझना जरूरी है। लगभग २०% कामकाजी महिलाएं तनाव के कारण धूम्रपान करने लगती हैं, जिससे भविष्य में उन्हें फेफड़ों का कैंसर हो सकता है। धूम्रपान की वजह से उनके फेफड़े भी कमजोर हो जाते हैं। हर महीने २५-३५ साल की उम्र की १० में से ३ महिलाएं खांसी की शिकायत लेकर अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचती हैं। धूम्रपान छोड़ना फेफड़ों के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। इससे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को बेहतर रूप से ऑक्सीजन मिलती है, ऊर्जा का स्तर बढ़ता है और फेफड़ों का कार्य सुधरता है। नियमित शारीरिक व्यायाम, गहरी साँस लेना, भरपूर पानी पीना और साल में एक बार फेफड़ों की जांच कराना जरूरी है।
 
तलेगाव स्थित ऑन्को लाइफ कैंसर सेंटर के रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. ज्योती मेहता ने कहॉ, ऑफिस में काम के वजह से आने वाले तनाव के कारण लगभग १०% महिलाएं धुम्रपान को प्राथमिकता देती हैं। धीरे-धीरे धूम्रपान फेफड़ों की कार्यक्षमता को प्रभावित करता है और कैंसर तथा अन्य सांस संबंधी रोगों का कारण बनता है। हर महीने २७ से ३५ वर्ष की उम्र की १० में से २ महिलाएं लगातार खांसी, थकावट और साँस लेने में तकलीफ जैसे लक्षणों के साथ इलाज के लिए आती हैं। फेफड़ों के कैंसर का पता छाती के एक्स-रे और सीटी स्कैन के जरिए लगाया जा सकता है। इसके बाद कैंसर की कोशिकाओं की पुष्टि के लिए बायोप्सी की जाती है। कैंसर की पुष्टि होने के बाद उपचार उसकी स्टेज पर निर्भर करता है, जिसमें सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी, टार्गेटेड थेरेपी या इन सभी का मिश्रण शामिल हो सकता है। धूम्रपान छोड़ना, घर के प्रदूषण को कम करना, पोषण युक्त आहार लेना और योग या मेडिटेशन जैसे तनाव प्रबंधन के तरीकों को अपनाने से फेफड़ों के कैंसर का खतरा कम किया जा सकता है।

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