“संवत्सरी-क्षमापना” दिवस को अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाए – डॉ. कल्याण गंगवाल

पुणे। शाकाहार समर्थक और सर्वजीव मंगल प्रतिष्ठान के संस्थापक डॉ. कल्याण गंगवाल ने केंद्र सरकार से जैन समुदाय के “संवत्सरी-क्षमापना” दिवस को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर “क्षमा/विलोप दिवस” के रूप में मनाने की मांग की है। क्षमापना दिवस, जिसे क्षमापना या संवत्सरी भी कहा जाता है, जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन जैन अनुयायी दूसरों से और दूसरों से क्षमा याचना करते हैं। यह पर्युषण पर्व का एक भाग है, जिसे आत्म-शुद्धि का समय माना जाता है और इस दिन के अंत में “मिच्छामि दुक्कड़म” शब्दों का प्रयोग करके क्षमा याचना की जाती है।
डॉ. गंगवाल ने कहा कि विश्व क्षमा दिवस मनाने के पीछे एक बहुत ही सकारात्मक विचार है। हमें अपनी गलतियों को स्वीकार करना चाहिए, दूसरों की गलतियों को क्षमा करना चाहिए और अपने हृदय में व्याप्त क्रोध और घृणा को भूल जाना चाहिए। यह दिन मनुष्य के सबसे महत्वपूर्ण मानवीय गुणों में से एक – क्षमा – के स्मरण और आत्मचिंतन का दिन है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य क्षमा करना, क्षमा माँगना और स्वयं को नकारात्मकता से मुक्त करना है। आज के तनावपूर्ण जीवन में गलतियों से सीखकर आगे बढ़ना जितना ज़रूरी है, उतना ही क्षमाशील होना भी आवश्यक है।
उन्होंने आगे कहा कि विश्व क्षमा दिवस मनाने के पीछे एक बहुत ही सकारात्मक विचार है। हमें अपनी गलतियों को स्वीकार करना चाहिए, दूसरों की गलतियों को क्षमा करना चाहिए और अपने हृदय में व्याप्त क्रोध और घृणा को भूल जाना चाहिए। यह दिन, चाहे हम कितने भी व्यस्त क्यों न हों, हमें रुककर अपने भीतर झाँकने और अपने व्यवहार पर पुनर्विचार करने का अवसर देता है। ‘क्षमा’ दुर्बलता की नहीं, बल्कि दृढ़ हृदय की निशानी है। जो क्षमा करता है, वह अपने लिए और समाज के लिए भी एक बड़ा कदम उठाता है। क्षमा का अर्थ है अतीत को स्वीकार करना और वर्तमान का शांतिपूर्वक सामना करना।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, क्षमा मानसिक तनाव को कम करती है, अवसाद को कम करती है और मन में स्थिरता लाती है। रिश्तों में तनाव कम होता है और संवाद का द्वार खुलता है। इससे न केवल व्यक्तिगत संबंध बल्कि सामाजिक सौहार्द भी मज़बूत होता है। धर्मशास्त्रीय दृष्टि से भी क्षमा को मोक्ष प्राप्ति का एक साधन माना गया है। हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म में क्षमा के महत्व पर ज़ोर दिया गया है। महात्मा गांधी ने कहा था – “कमज़ोर व्यक्ति कभी क्षमा नहीं कर सकता; क्षमा बलवान का कर्म है।” इसलिए क्षमा का महत्व बहुत अधिक है, इसलिए डॉ. कल्याण गंगवाल ने कहा है कि “संवत्सरी-क्षमापना” दिवस को अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए।