वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के खिलाफ मिस फरहा चैरिटेबल फाउंडेशन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

नई दिल्ली . मिस फरहा चैरिटेबल फाउंडेशन ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय में दायर अपनी याचिका पर आज, 16 अप्रैल 2025 को हुई सुनवाई का स्वागत किया है। यह याचिका फाउंडेशन की संस्थापक डॉ. फरहा अनवर हुसैन शेख और श्री अनवर हुसैन शेख द्वारा दायर की गई है, जिसका केस नंबर ECSCIN01150892025 और डायरी नंबर 19743/2025 है। याचिका 15 अप्रैल 2025 को दायर की गई थी। सर्वोच्च न्यायालय की पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन शामिल हैं, ने इस अधिनियम के खिलाफ दायर कुल 73 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
सुप्रीम कोर्ट में आज के तर्क (आर्ग्यूमेंट्स):
• याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क:
◦ वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 मुस्लिम धर्म के आवश्यक और अभिन्न पहलुओं में हस्तक्षेप करता है, जो संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार) के तहत संरक्षित हैं। उन्होंने कहा कि यह कानून धार्मिक मामलों में अनुचित दखल देता है और वक्फ संपत्तियों की स्वायत्तता को कमजोर करता है।
◦ वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने अधिनियम की धारा 3D और 3E पर सवाल उठाए, जो पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) द्वारा संरक्षित स्मारकों और अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में वक्फ घोषणा को अमान्य करते हैं। उन्होंने इसे संपत्ति के अधिकारों (अनुच्छेद 300A) का उल्लंघन बताया।
◦ वरिष्ठ अधिवक्ता ए.एम. सिंघवी ने ‘वक्फ बाय यूज़र’ की अवधारणा को हटाने पर आपत्ति जताई, जिसे रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता दी थी। उन्होंने कहा कि यह ऐतिहासिक वक्फ संपत्तियों, जैसे मस्जिदों और कब्रिस्तानों, को खतरे में डालता है, जिनके पास अक्सर औपचारिक दस्तावेज नहीं होते।
◦ वरिष्ठ अधिवक्ता सी.यू. सिंह ने तर्क दिया कि अधिनियम में गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में शामिल करने का प्रावधान मुस्लिम समुदाय के आत्म-प्रबंधन के अधिकार का उल्लंघन करता है, जो अनुच्छेद 26 के तहत संरक्षित है।
◦ याचिकाकर्ता इमरान मसूद ने कहा कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के अधिकारों पर बंदिश लगाता है और धार्मिक स्वतंत्रता को कमजोर करता है।
• केंद्र सरकार की ओर से तर्क:
◦ सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि यह संशोधन वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता, जवाबदेही और तकनीकी दक्षता लाने के लिए आवश्यक है। उन्होंने दावा किया कि यह कानून गरीब और हाशिए पर रहने वाले मुस्लिम समुदाय, विशेष रूप से महिलाओं और पासमांदा मुस्लिमों, के लिए लाभकारी है।
◦ मेहता ने यह भी तर्क दिया कि वक्फ बोर्ड एक वैधानिक निकाय है, और इसमें गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना समावेशिता को बढ़ावा देता है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय वक्फ परिषद में अधिकतम चार गैर-मुस्लिम और राज्य वक्फ बोर्ड में केवल तीन गैर-मुस्लिम सदस्य होंगे।
◦ केंद्र ने यह भी स्पष्ट किया कि अधिनियम में जिला कलेक्टर को वक्फ संपत्तियों के विवादों में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार देना राजस्व रिकॉर्ड के साथ तालमेल सुनिश्चित करता है।
• न्यायालय की टिप्पणियां और सवाल:
◦ मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने ‘वक्फ बाय यूज़र’ की अवधारणा पर चिंता व्यक्त की, खासकर उन संपत्तियों के संदर्भ में जिनके पास दस्तावेजी प्रमाण नहीं हैं। उन्होंने पूछा, “ऐसे वक्फ को कैसे पंजीकृत किया जाएगा? उनके पास कौन से दस्तावेज होंगे? यह कुछ गलत करने का कारण बन सकता है।”
◦ न्यायालय ने पूछा कि क्या हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने की अनुमति दी जाएगी, जैसा कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रस्ताव है।
◦ पीठ ने सुझाव दिया कि वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद के सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए, सिवाय उन पदाधिकारियों के जो पदेन सदस्य हैं।
◦ मुख्य न्यायाधीश ने अधिनियम के पारित होने के बाद कुछ राज्यों में हुई हिंसा की निंदा की और कहा कि यह “बेहद परेशान करने वाला” है।
मिस फरहा चैरिटेबल फाउंडेशन का पक्ष: मिस फरहा चैरिटेबल फाउंडेशन का दृढ़ मत है कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और सांस्कृतिक स्वायत्तता को कमजोर करता है। यह अधिनियम वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में अनुचित सरकारी हस्तक्षेप को बढ़ावा देता है, जो सामाजिक कल्याण, शिक्षा और धार्मिक कार्यों के लिए समर्पित हैं। हमारी याचिका में इस अधिनियम को संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 25, 26 और 300A (संपत्ति का अधिकार) के उल्लंघन के आधार पर चुनौती दी गई है। हम सर्वोच्च न्यायालय के विचारशील और निष्पक्ष दृष्टिकोण की सराहना करते हैं और इस मामले में न्याय की आशा करते हैं।
अगली सुनवाई: सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई 17 अप्रैल 2025 को निर्धारित की है, जहां याचिकाकर्ताओं और केंद्र सरकार के बीच बहस जारी रहेगी। मिस फरहा चैरिटेबल फाउंडेशन इस कानूनी लड़ाई में अपनी प्रतिबद्धता दोहराता है और देश भर के समुदायों के साथ मिलकर संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए कार्य करना जारी रखेगा।