श्मशान में कबूतरों का अतिक्रमण से दशक्रिया विधि में बाधा
काक स्पर्श’ विधि संकट में, पुणे में दशक्रिया विधि की पवित्रता पर उठे रहे सवाल _संदीप खर्डेकर

पुणे. पुणे के वैकुंठ स्मशानभूमि में हाल ही में दशक्रिया विधि के दौरान देखे गए एक चिंताजनक दृश्य ने धार्मिक मान्यताओं और पर्यावरण संतुलन को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस संदर्भ में समाजसेवी एवं क्रिएटिव फाउंडेशन के अध्यक्ष संदीप खर्डेकर ने पुणे महानगरपालिका आयुक्त मा. राजेंद्र भोसले को पत्र लिखकर कबूतरों के बढ़ते अतिक्रमण पर कड़ी कार्यवाही की मांग की है।
काक स्पर्श की परंपरा पर कबूतरों का संकट
दशक्रिया विधि में पिंडदान के समय काक (कौआ) द्वारा पिंड का स्पर्श होना एक महत्वपूर्ण धार्मिक प्रतीक होता है। इसे यह संकेत माना जाता है कि पितृ अथवा दिवंगत आत्मा ने अन्न को स्वीकार किया है। लेकिन वैकुंठ स्मशानभूमि में अब यह परंपरा संकट में है, क्योंकि कौओं की जगह कबूतरों की झुंड वहां अन्न पर टूट पड़ती है।
संदीप खर्डेकर ने अपने पत्र में लिखा है कि कबूतरों की झुंड न केवल कौओं को वहां से खदेड़ रही है, बल्कि पिंड पर रखे गए खाद्य पदार्थों को भी चट कर जाती है। यह दृश्य न केवल धर्मनिष्ठ लोगों के लिए असहज है, बल्कि धार्मिक विधि की शुद्धता और भावना को भी आघात पहुँचाता है। कबूतर कोई संरक्षित प्राणी नहीं हैं और इनकी आबादी अनियंत्रित रूप से बढ़ती जा रही है। उन्होंने सुझाव दिया कि जिस प्रकार जानवरों की अधिक जनसंख्या को नियंत्रित करने हेतु ‘कलिंग’ (कंट्रोल प्रक्रिया) अपनाई जाती है, उसी प्रकार वनविभाग और पक्षी विशेषज्ञों से चर्चा कर कबूतरों की संख्या नियंत्रित करने के उपाय किए जाएं।
पुणे मनपा पहले ही ले चुकी है कड़ा रुख
पुणे महानगरपालिका ने पहले ही सार्वजनिक स्थानों पर कबूतरों को दाना डालने वालों पर दंडात्मक कार्यवाही के निर्देश जारी किए हैं। खर्डेकर ने इसी संदर्भ में स्मशानभूमि जैसी धार्मिक संवेदनशील जगहों पर भी विशेष ध्यान देने की मांग की है।
यह मुद्दा केवल एक स्थान या परंपरा तक सीमित नहीं है, बल्कि धार्मिक आस्था, शहरी जैव विविधता और सार्वजनिक स्थानों पर अनुशासन के बीच संतुलन का प्रश्न है। अब देखना यह है कि पुणे मनपा और संबंधित विभाग इस दिशा में कौन से ठोस कदम उठाते है।